Shiv Stuti | आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति [PDF + MP3]

The word Stuti means the poem composed in the praise of God by their devotee. Shiv Stuti is dedicated to the Lord Shiva. In this article we will see the Shiv Stuti composed by the great devotee of the Lord Shiva Shri Adi Shankaracharya. Lord Shiva is called as a “Bholenath” because he listens to the prayers of his devotees very soon and fulfills their prayers. Just chanting the Shiv Panchakshar Mantra gives the blessing of Lord Shiva.

भगवान शिव यह हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा पूजनीय भगवान है | सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है इसलिए भक्तजन सोमवार के दिन शिव मंदिर जाके भगवान शिव की पूजा करते है | महादेव अपने भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है इसीलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है |

स्तुति करने या गाने का अर्थ होता है भगवान का गुणगान करना, भगवान की महानता का वर्णन करना | शिव स्तुति भगवान भोलेनाथ की प्रार्थना करते वक्त गायी जाती है | अपने भक्तों की प्रार्थना से जल्दी प्रसन्न होने के कारण शिव शंकर भगवान को आशुतोष भी कहा जाता है | हिंदू धर्म ग्रंथो में भगवान शिव की बहुत सारी स्तुतिया मौजूद है | रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र भी एक शिव स्तुति है |इस लेख में हम श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति को देखेंगे | शिव स्तुति की मूल रचना संस्कृत भाषा में की गयी है |


Shiv Stuti Lyrics in Hindi

|| श्री शिव स्तुति ||

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥


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